छत्तीसगढ़: नकली पनीर का बढ़ता खतरा, स्वास्थ्य के साथ बड़ा खिलवाड़
छत्तीसगढ़ में नकली पनीर का धंधा तेजी से फैल रहा है। सस्ते दामों पर बिकने वाले इस पनीर को रिफाइंड तेल, अरारोट, सिंथेटिक पाउडर और खतरनाक केमिकल से तैयार किया जा रहा है। सफेद रंग के लिए इसमें डिस्टेंपर पेंट तक मिलाया जा रहा है, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। यह नकली पनीर गुमटियों, चौपाटियों, फूड कॉर्नर, होटलों और शादियों में धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है।
स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव
डॉक्टरों के अनुसार, लगातार नकली पनीर के सेवन से कैंसर, हार्ट अटैक, बीपी और शुगर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों में इसका प्रभाव और भी घातक है, जिससे एलर्जी, पेट की समस्याएं और ग्रोथ रुक सकती है। कुछ मामलों में, खून की कमी और गुर्दे व लिवर की क्षति भी हो सकती है।
सस्ते दाम पर मिल रहा नकली पनीर
असली पनीर का बाजार मूल्य 420-450 रुपये प्रति किलो है, जबकि नकली पनीर मात्र 150-200 रुपये में बेचा जा रहा है। इसका व्यापक उपयोग शादियों, रेस्टोरेंट्स और बल्क ऑर्डर्स में हो रहा है, जहां लोग इसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते।
कार्रवाई का अभाव
तिल्दा, भाटापारा, रायपुर, राजिम और अन्य जगहों पर नकली पनीर बनाने की फैक्ट्रियां सक्रिय हैं। यहां से यह पनीर मध्यप्रदेश, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान और कोलकाता तक सप्लाई हो रहा है। स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता के चलते नकली पनीर का कारोबार करने वाले बेखौफ हो गए हैं। छोटे शहरों और कस्बों में जांच लैब न होने से रिपोर्ट आने में महीनों लग जाते हैं, जिससे शिकायतकर्ता भी हतोत्साहित हो जाते हैं।
सावधानी जरूरी
स्वास्थ्य विभाग और खाद्य सुरक्षा एजेंसियों को इस पर सख्त कदम उठाने की जरूरत है। आम जनता को भी सजग रहकर पनीर की गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए, ताकि इस मिलावट के जाल में फंसने से बचा जा सके।
अपनी और अपने परिवार की सेहत को सुरक्षित रखने के लिए सतर्क रहें।