आज के चर्चित चेहरे: बहुमुखी प्रतिभा के धनी जगदीश पाठक

बहुमुखी प्रतिभा के धनी जगदीश पाठक: संघर्ष, सृजन और सफलता की कहानी


रायपुर से रायगढ़ तक शिक्षा का सफर
जगदीश पाठक की प्रारंभिक शिक्षा रायपुर में हुई, जबकि उनकी शेष शिक्षा रायगढ़ में पूरी हुई। आज भी उनकी कल्पनाओं में रायगढ़ जीवंत रहता है। बचपन में सीमित सुविधाओं के बावजूद, पाठक जी ने सहपाठियों के साथ किताबें साझा कर ज्ञान अर्जित किया।

सशस्त्र पुलिस बल से व्यंग्यकार बनने तक का सफर
सन् 1965 से 1968 तक वे सशस्त्र पुलिस बल (11वीं बटालियन) में कार्यरत रहे। उस समय तक उन्होंने हायर सेकेंडरी तक ही पढ़ाई की थी। लेकिन समाज को देखने और समझने की उनकी दृष्टि विकसित हो रही थी। इसी दौरान उन्होंने समाज की विसंगतियों पर लिखना शुरू किया और एक व्यंग्यकार के रूप में उभरे।

नौकरी से लेकर साहित्य सृजन तक
1968 में उनके पिता का स्थानांतरण मनेन्द्रगढ़ हो गया, और उनकी बटालियन केंद्रीय बटालियन बन गई। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर मनेन्द्रगढ़ में रहना शुरू किया और अंबिकापुर से कॉमर्स में स्नातक किया। स्नातक के बाद उन्हें भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी मिली।

साहित्य और सांस्कृतिक गतिविधियों में योगदान
बैकुंठपुर में पदस्थापना के दौरान उन्होंने संबोधन संस्था की पहली गोष्ठी आयोजित की, जिसमें गिरीश पंकज, जितेंद्र सिंह सोढ़ी, और रुद्र प्रसाद रूप जैसे साहित्यकार जुड़े। इस दौरान उनके व्यंग्य लेख वागर्थ, व्यंग्य यात्रा, दैनिक भास्कर, और दैनिक नवभारत में नियमित रूप से प्रकाशित होने लगे।

जीवन के कठिन क्षण और नए रास्ते
मंझले पुत्र की असामयिक मृत्यु से वे आहत हुए और समय पूर्व सेवानिवृत्ति ले ली। दुख से उबरने के लिए उन्होंने लेखन और कला में खुद को झोंक दिया। छोटे बेटे की भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के दौरान भोपाल में उन्हें फिल्म निर्माता प्रकाश झा की फिल्म राजनीति में काम करने का मौका मिला, जहां उन्होंने नाना पाटेकर और अजय देवगन जैसे बड़े कलाकारों के साथ काम किया।

कार्टून कला और प्रेरणा
घूमता दर्पण के प्रधान संपादक प्रवीण निशी और नव चिंतन के अरुण श्रीवास्तव की प्रेरणा से उन्होंने कार्टून कला में भी खुद को निखारा।

प्रकाशित रचनाएं और सोशल मीडिया का उपयोग
उनका व्यंग्य संग्रह छोटे छोटे तीर प्रकाशित हो चुका है। सोशल मीडिया पर वे लिखने को बड़ा मंच मानते हैं और कहते हैं, “यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कचरादान बनाते हैं या सुंदर फूलों भरा गमला।”

जगदीश पाठक आज भी साहित्य और कला के माध्यम से समाज को प्रेरणा देते हुए अपने अनुभवों को साझा करते रहते हैं।

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