“छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्योहार की धूम, दान और समरसता का अनोखा उत्सव”

 
बिलासपुर में महात्मा श्री राम भिक्षुक धर्म जागरण समिति द्वारा 29 जनवरी 2025 को साइंस कॉलेज मैदान में 1108 पार्थिव शिवलिंगों पर महा रुद्राभिषेक का आयोजन किया जाएगा। यह आयोजन मौनी अमावस्या के अवसर पर होगा। भक्तगण ₹1500 की रसीद कटवाकर इस पवित्र अनुष्ठान में शामिल हो सकते हैं। यह समारोह धार्मिक जागरूकता फैलाने और भक्ति के माध्यम से एकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।

छेरछेरा पुन्नी: महत्व और परंपरा



छेरछेरा पुन्नी छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार हर साल माघ पूर्णिमा (माघ महीने की पूर्णिमा) के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार कृषि और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताने और सामाजिक समानता के संदेश को बढ़ावा देने का प्रतीक है।

क्यों मनाया जाता है छेरछेरा पुन्नी?

1. अन्न का दान और फसल कटाई का उत्सव:

यह त्योहार नए अन्न (धान) की कटाई के बाद मनाया जाता है।

किसान अपनी फसल की पहली उपज को भगवान को समर्पित करते हैं और इसे समाज के जरूरतमंद लोगों के बीच बांटते हैं।

🌾  “छेर छेरा, माई कोठी के धान ला हेर हेरा” यह पारंपरिक नारा इस दिन गूंजता है, जिसका अर्थ है कि लोग धान दान करने की अपील करते हैं।



2. दान-पुण्य का पर्व:

इस दिन बच्चे, युवा और महिलाएं घर-घर जाकर अन्न (धान, चावल) मांगते हैं। इसे शुभ कार्य माना जाता है।

लोग खुशी-खुशी धान, मिठाई या पैसे देकर परोपकार और सामाजिक समरसता का प्रदर्शन करते हैं।



3. सामाजिक समानता का संदेश:

यह त्योहार जाति, वर्ग, और आर्थिक स्थिति के भेदभाव को मिटाकर समाज में एकता और समानता का संदेश देता है।

इसमें सभी वर्गों के लोग एक साथ भाग लेते हैं।




छेरछेरा के दिन की गतिविधियां

सुबह से बच्चे और युवा पारंपरिक गाने गाते हुए घर-घर जाते हैं।

महिलाएं घरों से धान, चावल या पैसे दान करती हैं।

गांवों और कस्बों में मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

सामूहिक भोज (भंडारा) का आयोजन भी होता है।


पारंपरिक महत्व

छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है, और यह त्योहार किसानों की मेहनत को सम्मानित करने और समाज में आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने का प्रतीक है।

छेरछेरा पुन्नी न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और आपसी सहयोग की भावना को बनाए रखने का माध्यम भी है।

 

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