प्रकृति की गोद मे छत्तीसगढ़…

 

रामतिल और उसके सुनहरे खेत।

 

बस्तर में बास्तानार और दरभा विकासखंड में इन दिनों रामतिल के पीले फूलों से सजे खेत सहज ही आकर्षित करते हैं। उच्च पठारी भूमि पर इन पीले फूलों के खेतों की सुंदरता देखते ही बनती है। ऐसे खूबसूरत दृश्य जैसे कि प्रकृति सुनहरी चादर बिछाकर स्वागत कर रही हो। राम तिल के खेतों को देखकर लगता है जैसे पंजाब के सरसों के खेत में आ गए हो। सूर्य की किरणें इन स्वर्ण फूलों की आभा को चारों तरफ़ बिखेर देती है।

 

किंतु बस्तर में खरीफ में तिलहन की प्रमुख और एकमात्र फसल रामतिल है। इसका तेल खाद्य तेल की श्रेणी में आता है किसान इसका उत्पादन कर तेल निकालकर सीधे खाने में इस्तेमाल करते थे।

 

रामतिल की बोनी भी किसान उड़द की तरह हरियाली अमावस्या त्योहार के बाद मरहान भूमि पर करते हैं और रासायनिक व जैविक खाद का उपयोग नहीं के बराबर करते हैं। किसान एक दो-बार हल चलाते हैं और इसका बीज खेत में बिखेर देते हैं। 50-60 दिन बाद इसमें पीले आकर्षक फूल आने शुरू हो जाते हैं 90 से 100 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ चार से पांच क्विंटल तक उत्पादन होता है। इसमें 35 से 45 प्रतिशत तक तेल रहता है जो खाने योग्य होता है।

 

 

 

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