
नमामि देवी नर्मदे….
माँ नर्मदा किनारे अनगिनत एसी जगह है। जहाँ जाओ तो कुछ ना कुछ नया मिलता हैं।
हर कही कुछ ना कुछ देखना समझना ओर जानने कि कोशीश करना हमेशा कम लगता हैं। क्योकि यह एक एसा धागा हैं। जिसका एक क्षोर मिल जाये तो उसे खिचते चले जाओ पर फिर भी दूसरा क्षोर पाना मुश्किल ही है।

कुछ समय पहले हमे किसी ने कहा था। पहाडी पर एक जमीन में कक्ष रुपी संरचना हैं। जो कभी किसी कि रहने या तप की स्थली रही थी। फिर एक दिन अजय ओर मेने उस जगह जाकर देखा पर कुछ नहीं मिला। हम घूमते फिरते धावली मठ (सुर्यमंदिर)चले गये। फिर कुछ महीनो बाद पुनः मोका मिला सुबह सुबह हम गये ओर हमे वह जगह मिल ग्ई। हमारे मित्र जो इन जगहो के जानकार रहे है। वो हमे लेकर गये।
हमने उस कक्ष को बाहर से देखा जिसका द्वार बहूत हि संकीर्ण हैं। ओर अंदर अंधेरा था मोबाइल लाईट के सहारे हम नीचे उतरे जहा छोटी छोटी सीढीया बनी हुई है । अंदर एक छोटा सा सुंदर कमरा था जो पत्थरो से सुव्यवस्थित बना है।
पर इस जगह को क्यो बनाया गया। क्या अभिप्राय रहा होगा इस छोटे से कक्ष को बनाने में जानने कि जिज्ञासा हुई
हम कुछ देर वही रुके रहे गर्मी के समय में बहुत ही शीतलता महसुस हो रही थी।
थोडी देर बाद हम वापस आ गये।
इस कक्ष को देखकर मन क्ई प्रश्नो का आना सहज ही रहा।
पर हमे कही से भी इसका सटीक उत्तर नहीं मिला।

वास्तविक रूप से ओंकार क्षेत्र बहुत ही रहस्यमय है।
इस ओंकार भूमि में आज भी महसूस करो तो तपसतरंगो का अहसास होता हैं। जैसा एक संत ने बताया हैं।
कुछ अनुभवी व्यक्तियों से सुना है। ओंकारेश्वर में आज भी ब्रह्ममुर्हत में ओंकार नाद होता हैं।
ओंकार और ओंकार क्षेत्र के बारे में तनिक मात्र भी जानना समझना बहूत ही वृह्द हैं। क्योंकि ओंकार क्षेत्र ब्रह्मांड का रहस्य हैं। ओर हम किसी भी क्षोर में नही है।
